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‘बुजुर्ग उन्हें भाते नहीं, युवाओं की बात समझते नहीं...’ पीढ़ियों के इसी अंतर में बह रही चुनावी बयार!

पटना से आरा पहुंचते-पहुंचते हमारे ड्राइवर शंकर जटाल ने उंगलियों पर बिहार की भावी राजनीति की जो तस्वीर बयां की थी, लगभग 300 किलोमीटर की यात्रा ने उस पर मुहर लगा दी। वापसी में अरवल होते हुए पटना के ठीक पहले मैंने उससे यह सच बताया तो खुद जटाल को भी यकीन नहीं हो रहा था। जटाल ने क्या बताया था, यह बाद में…।

फिलहाल यात्रा की बात। पटना से 25-30 किलोमीटर आगे बिहटा के रास्ते में पहले उमंग और फिर इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप के करीब है वाहन प्रदूषण जांच केंद्र। पहला पड़ाव यही बना। कुछ पूछने से पहले ही जवाब मिल गया, अभी कुछ कह नहीं सकते... बहुत टाइट है पोजिशन। हम मुस्करा कर आगे बढ़ गए।

महमदपुर में जनरल स्टोर और सब्जी-फल की दुकान के साथ ही शक्तिसाव मिल फर्नीचर के पास राकेश अग्रहरी से मुलाकात हुई। बोले- सरकार बदलेगी ई बेर। आगे पूछ लीजिए- देखिए सब क्या बोलता है।

बिहटा एयर फोर्स की बाउंड्री पार होते ही बाईं ओर एमआरएफ टायर का शोरूम है। दुकान खाली देख हम आगे बढ़े तो बिहारी ढाबा और रिमझिम पर आरा के राजेश सिंह मिले। सवालिया नजरों से बोले- कहां से हैं?

यह जानकर कि हम मीडिया से नहीं, बल्कि दिल्ली से सर्वे करने आए हैं तो बोले- लिख लीजिए सरकार बदल जाएगी। तो हमने कहा, "मने जंगलराज आ जायेगा!" अपनी गलती का अहसास होता कि राजेश सिंह मुस्कराते हुए बोले- बेंग (व्यंग्य) बोल रहे हैं आप...! थोड़ा आगे बढ़ने पर बिहटा चौक से कुछ पहले चंपारण मीट हाउस देख एक सवाल मन में आया कि बिहार के हर शहर से लेकर अब यूपी के कई शहरों में दिखने वाले इस नाम का आखिर राज क्या है? इसके जवाब की कहानी फिर कभी!

दुकान पर जब लोगों से बात की तो बोलने लगे कि ई बेर सरकार बदलेगा।

कोइलवर पार करने के बाद निर्माणाधीन फोरलेन शुरू होने से पहले जांच पार्टी एक्टिव दिखी। इसके बाद तिलंगा बाबा का बहुत पुराना ढाबा। ये ढाबा कभी अकेला हुआ करता था। तिलंगा बाबा तो अब नहीं हैं। बेटे गद्दी संभालते हैं। ढाबा हमेशा की तरह गुलजार है। एक कोने में ‘नई सरकार’ बन-बिगड़ रही है, असहमतियों के बीच। बहस का मुद्दा तेजस्वी के युवा चेहरे और कुछ करने की उम्मीद और मोदी प्रेम के बीच है। यह संदेश विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है।

यह संदेश ब्लॉक का प्रतापपुर गांव है। मिलीजुली आबादी। मिलेजुले मत, लेकिन राजद ज्यादा है। होने को तो भाजपा भी है, इस कुशवाहा बहुल गांव में। यादव-कुशवाहा कॉन्फ्लिक्ट भी दिखता है, लेकिन यह भी दिखता है कि नीतीश को कमजोर करने की जो चर्चाएं हवा में हैं, वे यहां भी असर कर चुकी हैं और इसने महागठबंधन की राह आसान कर दी है। हम यह सब बातें कर ही रहे थे, कि एक टिप्पणी आई, ‘भाजपा यह सब लोजपा के सहयोग से कर रही है।'

साथ बैठे सज्जन एक बच्चे की पोस्ट में देवी-देवताओं की बात से चिंतित हैं। बोले- बच्चों का इस तरह भावनाओं में बहना नया फैक्टर है, चिंता वाली बात भी। इसके लिए भी ‘इन्हें’ रोकना जरूरी है। किन्हें? यह पूछने पर चुप लगा जाते हैं। फिर बोले, ‘आरा में तो हिन्दू-मुस्लिम हो रहा है। वहां भाजपा प्लस में है। तीसरा लोजपा भी है। शायद हाकिम प्रसाद, लेकिन वोट कटेगा। भाकपा (माले) से कयामुद्दीन हैं। एक्टिव हैं। वोट बंटा तो लाभ मिल सकता है।'

ये आरा मुफस्सिल इलाका है। पहली बार कोई झंडा दिखा, भाजपा का, हालांकि जो सज्जन मिले यादव हैं। बोले, इधर यादव वोट बहुत है, जो भाकपा (माले) को जाएगा। दलित और अतिपिछड़ा भी। कुछ राजपूत भी उधर वोट कर सकते हैं।

हमने पूछा काहे तो सीधा जबाब नहीं देते। इतना जरूर बताते हैं कि तरारी और अगियांव सीट पर माले आश्वस्त है। ये रामनरेश सिंह हैं। पूरे बिहार में यही लहर है... तेजस्वी के पक्ष में।

राजद के इस अचानक उभार के पीछे का कारण पूछने पर कहते हैं, ‘सरकार की नाकामी’।

मोदी की या? तो बोले- नहीं, दोनों की। रोजगार, किसान की हालात देख रहे हैं आप। मजदूरों के साथ क्या हुआ?

लेकिन ये तो नीतीश का काम था? इस पर बोले- त भुगत रहे हैं न अब...साफ हो जाएंगे...!

संदेश विधानसभा में ही चांदी पंचायत का बाजार। संतोष सरकारी मुलाजिम हैं। चुनाव प्रकिया से भी जुड़े हैं। टिपिकल भोजपुरिया फैसलाकुन अंदाज में कहते हैं- ‘बदलाव होगा’। ये राजद के समर्थक तो नहीं लगे, लेकिन मानते हैं कि ‘तेजस्वी बहुत तेजी से निकल रहा है।’ यहां कुछ और लोग भी हैं, लेकिन बहस की गुंजाइश नहीं बची है। सब हमें ही संदेह से देख रहे हैं। एक सवाल भी आता है- अभी तक हम ये नहीं समझ पाए कि आप कौन हैं? जवाब बगल वाले सज्जन ने दिया है- ‘सुने नहीं दिल्ली से आये हैं...!’ (मीडिया सुनते ही लोग ऐसा पैंतरा लेते हैं इसलिए हमें मजबूरन पहचान छिपानी पड़ी)।

नारायणपुर भी संदेश में ही पड़ता है...यहां राजपूत मजबूत हैं। बाजरे की खेती भी जोरदार है। पूजा पंडाल भी सजा है। साथ चल रहे मेरे मित्र बताते हैं- ‘यहां चुनाव में संघर्ष न हो, हो ही नहीं सकता। यह अभी भी जारी है, वोट रोकने के लिए’। ये वही नारायणपुर है, जहां 1999 में हुई जातीय हिंसा में 11 दलितों की हत्या खासी चर्चित हुई थी।

अगला बोर्ड नसरतपुर का है। वही नसरतपुर, जिसकी भागीदारी 1857 की आजादी की लड़ाई में रही है। काफी बड़ा गांव है। मिली-जुली आबादी है। अंग्रेज सरकार के खिलाफ विद्रोह करने वाले यहीं छिपा करते थे। श्रीकांत और प्रसन्न कुमार चौधरी की किताब में विस्तार से जिक्र है। यहीं तीर्थकोल है, चर्चित कवि कुमार मुकुल का गांव। हमारी रुचि देख ड्राइवर ने बताया कि यहां ‘त्रिकोल का चर्चित मेला’ भी लगता है, जिसकी साथी मित्र भी तस्दीक करते हैं।

नसरतपुर में त्रिकोल का चर्चित मेला भी लगता है।

संदेश के चौरा बाजार की चर्चाओं से गुजरते हुए हम अजीमाबाद (अगियांव विधानसभा क्षेत्र) पहुंचे। राणा सिंह और उनके कुछ साथियों से मुलाकात हुई। माले से त्रस्त दिखे। कहते हैं, ‘गोली-बंदूक पार्टी है।’ यह कहने पर कि ये तो पुरानी बात हो गई? इस पर बोले- आप शायद कहीं बाहर से आए हैं! अगियांव ही नहीं, पूरे भोजपुर में इस बार माले और राजद साफ है (यह अब तक की अपने तरह की पहली टिप्पणी है)।

आगे पवना बाजार है। अगियांव विधानसभा क्षेत्र का सबसे व्यस्त इलाका। पूरा बाजार सड़क पर पसरा हुआ है। हम एक दुकान पर चाय-पानी के लिए रुकते हैं। थोड़ी बात हुई तो पता चला, बगल की दुकान तरारी से माले विधायक सुदामा प्रसाद के भाई राजनाथ प्रसाद की है। वो भाई की जीत के लिए स्वाभाविक रूप से आश्वस्त दिखे। बगल में खड़े व्यक्ति ने बताया कि वहां निर्दलीय सुनील पांडेय के साथ सीधी टक्कर है।

यहीं से वापसी का इरादा था कि पता चला आरा और कोइलवर में जबर्दस्त जाम है। हम सहार होते हुए अरवल के रास्ते चल पड़े। रास्ते में नारायणपुर रोड पर सड़क दूर तक चमकाई जा रही है। काफी तेजी से काम चल रहा है। न्यू दुर्गा मंदिर के सामने और राधाकृष्ण मेगामार्ट के नीचे की चाय और दूसरी दुकानों पर भी कोई नई बात नहीं मिली। भोजपुर की ज्यादातर सीटों पर महागठबंधन और पूरे बिहार में बदलाव के फैसलाकुन जुमले सुनते हुए हम आगे बढ़े। तो खैरा में इंटिग्रिटी इंटरनेशनल स्कूल के बाहर सुरेश सिंह मिले। बोले- अगियांव, आरा और बड़हरा में महागठबंधन को थोड़ा दिक्कत आएगा, लेकिन बाकी क्लियरे है।

सोन पुल की ओर मुड़ने से पहले हमने गाड़ी सहार की ओर ले ली है। सहार में प्रवेश करते ही कुछ युवाओं से मुलाकात हुई। देखकर ही लग गया चुनावी अभियान में हैं। बात छेड़ी तो बोले, ‘वो बुजुर्गों को विदा कर रहे हैं और युवाओं की अनदेखी! कोई ‘इनसे’ पूछे कि आखिर इनकी पालिटिक्स क्या है!’ हमने साफ-साफ बात कहने के लिए कहा तो जवाब मिला, ‘अरे भाई साहब, मोदी जी को बुजुर्ग भाते नहीं, और युवाओं की बात उन्हें समझ नहीं आती। नीतीश जी भी बूढ़े हो चले हैं। ऐसे में युवाओं को ही तो आगे आना होगा न। तो आने दीजिए! क्यों दिक्कत हो रही है।’

एक युवक ने कहा, ‘वे नौकरी की नहीं, रोजगार सृजित करने की बात कर रहे हैं। मतलब समोसे ही बिकवाएंगे। तेजस्वी तो नई नौकरी की भी नहीं, खाली पद भरने की तो बात कर रहा है। इनके तो वादे में ही धोखा है।’

दूसरे ने कहा- तुम नहीं समझोगे, वे शायद ज्यादा ईमानदार हैं!

सहार में प्रवेश करते ही गोकुल स्वीट्स पर भी ऐसी ही प्रतिक्रिया मिली। कुछ पढ़े-लिखे नौजवान मिले। बोले, ‘जिस तरह टीएन शेषन साहब ने चुनाव के दौरान किसी सर्वे के मीडिया में प्रचार पर रोक लगा दी थी, ऐसा फिर हो जाए तो सारा सच सामने आ जाएगा।’ तभी एक युवक ने याद दिलाया, ‘आपको सच पता हो या न हो, मोदी जी सच जान गए हैं। तभी न आज कह रहे थे कि मुझे तो अभी नीतीश जी के साथ साढ़े तीन ही साल हुआ है...!’ सूचनाओं के तेजी से प्रसारण और उसकी व्याख्या का ये बिहार का अपना अंदाज है।

अरवल, पालीगंज, बिक्रम, फुलवारी होते हुए हम वापस पटना लौट आए हैं।



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