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जरूरत पड़ने पर गर्भवती महिला की डिलीवरी करा सकते हैं; फर्स्ट एड दवाओं से लेकर कार्डिएक शॉक मशीन तक मौजूद

बंगाल की खाड़ी से लगा ओडिशा का तटीय जिला केंद्रपाड़ा, भीतरकनिका नेशनल पार्क और यहां रहने वाली मगरमच्छों की कई प्रजातियों और मैंग्रोव के लिए जाना जाता है। यहां कई छोटी-बड़ी नदियां हैं जो इस इलाके को कुछ हिस्सों में बांटती हैं। जिसके चलते दूर के गांवों में सड़कों की पहुंच न के बराबर है। ऐसे में इमरजेंसी हालात में एंबुलेंस का गांवों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

इन मुश्किलों से निपटने के लिए ओडिशा सरकार ने बोट एंबुलेंस की शुरुआत की है। ये नाव एंबुलेंस मरीजों और अस्पताल की दूरी को कम करती हैं और कम से कम समय में मरीज को नजदीकी अस्पताल पहुंचा देती हैं। आम लोग 108 पर फोन करके इस फ्री एंबुलेंस सेवा का फायदा उठा सकते हैं।

इस एंबुलेंस पर तैनात सभी स्टाफ को आपात स्थिति से निपटने के लिए खास ट्रेनिंग दी गई है। वे जरूरत पड़ने पर गर्भवती महिला की डिलीवरी करा सकते है।

सरकार ने इसी महीने केंद्रपाड़ा के दूर के गांवों के लिए दो नाव एंबुलेंस शुरू की हैं। जो दवाइयां या इक्विपमेंट सामान्य एंबुलेंस में उपलब्ध होते हैं वही सब पानी पर चलने वाली इन एंबुलेंसों में भी हैं। मुंबई की महिंद्रा मरीन कंपनी ने इन नावों को ऑप्टिकल फाइबर से बनाया है।

एक नाव एंबुलेंस को राजनगर ब्लॉक के गुप्ती घाट पर तैनात किया गया है, जबकि दूसरी महाकालपाड़ा ब्लॉक में तैनात हैं। सरकार का दावा है कि गुप्ती घाट पर तैनात नाव एंबुलेंस सड़क मार्ग से कटी हुई सात पंचायतों के करीब पचास हजार लोगों की सेवा में है। तीन स्थानों पर तैरते हुए जैटी भी बनाए गए हैं जहां आकर एंबुलेंस खड़ी हो सकती है और मरीजों को रिसीव कर सकती हैं।

केंद्रपाड़ा में 108 सेवा के क्लस्टर लीडर जगन्नाथ बेहेरा ने हमें बताया, 'नदी के उस ओर कई ऐसे गांव हैं जहां तक सड़कें नहीं हैं या फिर मॉनसून के दौरान सड़कों पर पानी भर जाता है। कई इलाकों में सड़क के जरिए अस्पताल तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है। इन नाव एंबुलेंस से आपात स्थिति में हम मरीज को कम से कम समय में अस्पताल पहुंचाते हैं। '

एंबुलेंस में तैनात पेरामेडिकल स्टाफ का कहना है कि यहां मरीजों का ध्यान रखने के लिए सभी सुविधाएं मौजूद हैं। फार्मासिस्ट दिब्या सुंदर जेना कहते हैं, 'इस एंबुलेंस में डिलीवरी किट है, दुर्घटना में घायल लोगों के तुरंत उपचार के लिए स्पलिंट्स हैं। बीपी मशीन, स्टेथेस्कोप, कार्डिएक शॉक मशीन और फर्स्ट एड की सभी दवाइयां और इक्विपमेंट हैं।'

तीन स्थानों पर तैरते हुए जैटी भी बनाए गए हैं जहां आकर एंबुलेंस खड़ी हो सकती है और मरीजों को रिसीव कर सकती हैं।

गुप्ती में खड़ी एंबुलेंस के स्टाफ ने हमें तीन फोल्डेबल स्ट्रेचर दिखाए। इन्हें अलग-अलग हालातों में इस्तेमाल किया जा सकता है। एक स्ट्रेचर खासतौर से दुर्घटना में घायल लोगों के लिए बनाया गया है। बुजुर्गों के लिए भी एक विशेष स्ट्रेचर है जिसे बीच में से मोड़ा जा सकता है जबकि एक फ्लैट बेड स्ट्रेचर भी जिससे मरीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। इसमें व्हीलचेयर भी है। ऑक्सीजन सिलेंडर भी मौजूद है ताकि जरूरत पड़ने पर एंबुलेंस में ही ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जा सके.

गुप्ती में तैनात एंबुलेंस बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली ब्रह्मणी नदी से निकली पटसाला नदी में चलती है। इस नदी में मगरमच्छ अधिक होने के कारण स्थानीय लोग छोटी नावों में चलने से डरते हैं। हालांकि, गुप्ती घाट पर ही प्राइमरी हेल्थ सेंटर (पीएचसी) भी मौजूद है।

इस एंबुलेंस पर तैनात सभी स्टाफ को आपात स्थिति से निपटने के लिए खास ट्रेनिंग दी गई है। वे जरूरत पड़ने पर गर्भवती महिला की डिलीवरी करा सकते है। एक्सीडेंट में घायल लोगों या सांप के डसने का शिकार लोगों का भी अस्पताल पहुंचने से पहले पूरा ख्याल रख सकते हैं। जो सुविधाएं मोटर एंबुलेंस में हैं वहीं नाव एंबुलेंस में भी हैं।

108 को जाने वाली सभी आपात कॉल भुवनेश्वर में एक कॉल सेंटर में पहुंचती हैं जिन्हें जिकित्जा हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी मैनेज करती है।

यहां तैनात टेक्निकल स्टाफ के मुताबिक ये नाव आम नावों से तेज चलती है और प्रदूषण और आवाज भी कम करती है। एंबुलेंस के ड्राइवर किशोर कुमार बेहेरा बताते हैं कि वो रोजाना सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक काम करते हैं। इस एंबुलेंस में फोर स्ट्रोक डीजल इंजन हैं। इनमें GPS सिस्टम भी लगा है। जब भी किसी मरीज की सूचना मिलती है, एंबुलेंस तत्काल वहां पहुंचने की कोशिश करती है।

खुश हैं गांव वाले

गांव के लोगों का कहना है कि इस नई नाव एंबुलेंस से केंद्रपाड़ा जिले में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा। बानाबिहारीपुर गांव के दीपक कुमार कहते हैं, 'हमारे गांव के दूसरी ओर कई ऐसे गांव हैं जहां तक सड़क से पहुंच आसान नहीं है। अगर वे सड़क से जाना चाहे तो बहुत लंबा रास्ता लेना पड़ता है क्योंकि कई गांव ऐसे हैं जिनके दो ओर समंदर है और एक ओर नदी।'

वे कहते हैं, 'अगर ये गांव वाले सड़क मार्ग के बजाए नाव एंबुलेंस से अस्पताल जाते हैं तो डेढ़ घंटे तक का वक्त बचता है। सड़कें भी बहुत अच्छी नहीं है और मॉनसून में तो इनकी हालत और खराब हो जाती है।'

स्थानीय लोग बताते हैं कि एक निजी नाव भी यहां चलती है लेकिन वे तब ही चलती है जब पर्याप्त सवारियां हो जाती हैं। बलरामपुरा गांव के बिसंबर दास कहते हैं, 'यहां ऐसी सेवा की बहुत जरूरत थी। सरकार ने एक अच्छा कदम उठाया है। इससे लोगों की जानें बच सकेंगी।'

इस एंबुलेंस में डिलीवरी किट है, दुर्घटना में घायल लोगों के तुरंत उपचार के लिए स्पलिंट्स हैं। बीपी मशीन, स्टेथेस्कोप, कार्डिएक शॉक मशीन और फर्स्ट एड की सभी दवाइयां और उपकरण हैं।

कैसे काम करती है एंबुलेंस सेवा

108 को जाने वाली सभी आपात कॉल भुवनेश्वर में एक कॉल सेंटर में पहुंचती हैं जिन्हें जिकित्जा हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी मैनेज करती है। कंपनी के प्रमुख सब्यासाची बिस्वाल के मुताबिक अब ओडिशा में छह नाव एंबुलेंस हैं जो दूरस्थ इलाके के मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाती हैं। उनके मुताबिक केंद्रपाड़ा में दो, मलकानगिरी में दो, कोरापुट में एक और कालाहांडी में एक नाव एंबुलेंस तैनात है। इनकी संख्या बढ़ाने पर भी काम चल रहा है।

बिस्वाल के मुताबिक नाव एंबुलेंस को अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। वे बताते हैं कि शुरूआत में लोग इनकी सेवा लेने में झिझक रहे थे लेकिन अब सबको पता चल गया है। एंबुलेंस हेल्पलाइन एक्जीक्यूटिव देबी प्रसाद के मुताबिक, जैसे ही कोई 108 पर कॉल करता है उससे पूरी जानकारी लेकर नजदीकी एंबुलेंस को भेज दी जाती है. कॉल सेंटर से मरीज की जानकारी मिलते ही एंबुलेंस वहां पहुंच जाती है।



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ओडिशा सरकार की 108 एंबुलेंस सेवा के तहत चलने वाली ये नाव एंबुलेंस मरीजों और अस्पताल की दूरी को कम करती हैं और कम से कम समय में मरीज को नजदीकी अस्पताल पहुंचा देती हैं।


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