सत्य की खोज Satya Ki Khoj
सत्य की खोज Satya Ki Khoj
एक प्रोफेसर जो की बहुत बुद्धिमान थे। उन्होंने लम्बे समय तक अपने छात्रों
को पढ़ाया। उनका लोहा सभी मानते थे। धीरे धीरे उनकी रूचि अध्यात्म की तरफ
होने लगी और वह सत्य की खोज में लग गए। वह अनेक ज्ञानी महा पुरुषों, साधु
और सन्यासियों से मिलने लगे और सभी से एक ही प्रश्न दोहराते थे की सत्य क्या
है। मगर प्रश्न के उत्तर से वे तनिक भी संतुष्ट नहीं होते थे। फिर वह अपने
शहर से बहार भी जाने लगे, जो कोई भी उन्हे किसी ज्ञानी पुरुष या महिला का पता
देता वह वहां के लिए निकल पढ़ते , मगर कहीं भी उनके प्रश्न का उत्तर उन्हें सही से
संतुष्ट नहीं कर सका। कुछ वक़्त गुजरने के बाद उन्हे उनका एक पुराना मित्र मिला,
उसने उन्हे एक स्वामी जी का पता बताया, किन्तु उसने कहा की वहां पहुंचना बहुत ही
कठिन है। मगर प्रोफेसर साहब तो सत्य का पता लगाने के लिए आतुर थे। वह तुरंत निकल
पड़े स्वामी जी से मिलने। वह जंगल और नदी पार कर एक सीधे पर्वत के सामने पहुँच गए,
अब यहाँ से उनको कुछ किलो मीटर की सीधी चढ़ाई चढ़नी थी मगर प्रोफेसर साहब तनिक भी
विचलित नहीं हुए और चढ़ी चढ़ कर स्वामी जी की कुटिया में पहुँच गए। वहां पहुँच कर
उन्होंने स्वामी जी को अपने आने का कारन बताया और कहा की आप कृपा कर मुझे जल्दी
से सत्य का ज्ञान दे। यह सुनकर स्वामी जी ने उन्हें कुछ प्रवचन देना शुरू किये
लेकिन प्रोफेसर साहब का ध्यान उनमे था ही नहीं उन्होने स्वामी जी को कहा की आप जो
कुछ मुझे बता रहे हो वो सब मुझे मालूम है, आप तो बस मुझे सत्य का ज्ञान दे
दीजिये। स्वामी जी ने कहा ठीक है मगर आप बहुत दूर से आये हैं तो कृपया चाय पी जिए
उसके बाद में आप को सत्य का ज्ञान दूंगा। प्रोफेसर साहब एक दम अधीर हो चुके थे
उन्होंने कहा ठीक है, स्वामी जी ने एक कप और प्लेट प्रोफेसर साहब को पकड़ा दी और
उस में चाय उड़ेलने लगे। कप भर जाने के बाद चाय प्लेट में और फिर उसके बाद जमीन पर
गिरने लगी। यह देख कर प्रोफेसर साहब ने कहा की इस कप में और चाय नहीं आ सकती इस
लिए चाय और मत डाले। तब स्वामी जी ने कहा की यही में तुम्हे समझाना चाहता हूँ की
जब तक आप अपनी समझ का दायरा बढ़ा नहीं करते तब तक ज्ञान आपके अंदर नहीं समां सकता
आप को ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने आप को इस काबिल बनाना होगा तभी आप सत्य को
समझ सकते है। यह सुनकर प्रोफेसर साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह स्वामी जी
के शिष्य बन गए और धीरे धीरे ज्ञान प्राप्ति की और अग्रसर हुए।
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