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मशहूर 56 दुकान की रौनक अनलॉक के बाद भी नहीं लौटी, हर दिन 25 लाख रुपए का होता था बिजनेस

इंदौर... यहां पोहे-जलेबी के साथ दिन की शुरुआत होती है और देर रात सराफा और 56 दुकान की रबड़ी और कुल्फी खाने के बाद ही लोगों का दिन पूरा होता है। सुबह से लेकर देर रात तकचहल-पहल से भरेरहने वाले मार्केट में अभीइक्का-दुक्का लोग ही नजर आ रहे हैं। यहां की रफ्तार परकोरोना ने ब्रेक लगा दिया है।इंदौर में रीगल चौराहा, राजश्री हॉस्पिटल के सामने, अन्नापूर्णा मंदिर के सामने, आईटी पार्क के सामनेकई जगहों पर रात में करीब 600 खाने-पीने की दुकानें लगती थीं। लॉकडाउन में यहां हर दिन 8 से 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ है।

देश ही नहीं, दुनियामें मशहूर इंदौर की 56 दुकानों परलॉकडाउन का बुरा प्रभाव पड़ा। यहां पर हर दिन 20 से 25 लाख रुपए का बिजनेस होता था, लेकिन करीब 4महीने से यहां के दुकानदार एक रुपए नहीं कमा पाए। अनलॉक में अब यहां की दुकानोंकोखोलने की छूट तो मिली।लेकिन, सिर्फ पार्सल सुविधा ही चालू है। ऐसे में अब भी 56 दुकान की वो रौनक नहीं लौट रही है, जो पहले होती थी। सराफा में तो अनलॉक के बाद भी ठेले नहीं दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि यहां पर नवीनीकरण चल रहा है।

तस्वीर इंदौर के सराफा मार्केट की है। यहां कोरोना के चलते हर 8-10 लाख रुपए का नुकसान हुआ है। फाइल फोटो

इंदौर में 600 से ज्यादा दुकानें सजती हैं
फूड इंस्पेक्टरमनीष स्वामीने स्ट्रीट फूड को लेकर बताया कि सराफा के अलावा, प्रेस क्लब के सामने चाट-चौपाटी, सयाजी होटल के सामने, रीगल चौराहा, राजश्री हॉस्पिटल के सामने, अन्नापूर्णा मंदिर के सामने, नरेंद्र तिवारी मार्ग, गीता भवन चौराहा मनोरमागंज, गोकुल चौराहे के पास, खंडवा रोड में आईटी पार्क के सामने, विक्रम टावर के पास, भंवरकुआं में दीनदयाल उपवन के सामने, सिंधी कॉलाेनी क्षेत्र में, स्कीम नंबर 140 वाली गली में, तिलक नगर, कनाड़िया रोड में मिलाकर इंदौर शहर में 600 से ज्यादा अस्थाई दुकानें हैं।

इसके अलावा सीजनल मोबाइल वेंडर अलग हैं। ये सीजन के हिसाब से फूड बेचते हैं। गर्मी के दिनों में आइसक्रीम करीब 500, गन्ने के 450, कुल्फी के करीब 350 ठेले लगते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, हर ठेले में कम से कम दो से तीन लोग काम करते हैं। इस तरह से 5-6हजार परिवार पलते हैं।

8 बजे से सजता है सराफे में जायके का बाजार

सराफा चौपाटी के राम गुप्ता ने बताया कि आधा किमी लंबी गली में लगने वाली सराफा चौपाटी लाॅकडाउन के बाद से अब तक बंद है। अनलॉक में अन्य खाने-पीने की दुकानें तो खुलनी शुरू हो गईं, लेकिन हमारे यहां नवीनीकरण के कारण अभी भी दुकानें बंद हैं। काम को देखते हुए लग रहा है कि 15 अगस्त के बाद ही यहां पर दुकानें एक बार फिर से सज पाएंगीं।

उन्होंनेबताया कि यहां रजिस्टर्ड 80 दुकानें हैं।यहां रात 8 बजे कुल 130 दुकानें अलग-अलग जायकों के साथ सजती हैं।जो देर रात 2 बजे तक खाने के शौकीनों के लिए लजीज व्यंजन परोसती हैं। देर रात भी यहां खाने के शौकीनों का जमावड़ा रहता है। करीब 80 साल पुरानी इस चौपाटी पर नॉनवेज नहीं बिकता है।

सराफा चौपाटी मेंरजिस्टर्ड 80 दुकानें हैं। यहां रात दो बजे तक दुकानें खुली रहती थीं। लॉकडाउन के बाद से ही यहां दुकाने बंद हैं। - फाइल फोटो

बाजार में गुलाब जामुन, काला जामुन, शाही रबड़ी, कलाकन्द, मूंग का हलवा, मालपुए, मावा बाटी, बासुंदी, श्रीखण्ड, शिकंजी, फालूदा, राजभोग सहित कई व्यंजन इस गली में आपको मिल जाएंगे। मिठाई के अलावा यहां भुट्टे का कीस, मटर और हरे चने की कचौरी और गराड़ू, दही बड़े, चाट पकौड़ी, पानी पूरी, दही पूरी, सेंव पूरी, पाव भाजी और छोले टिकिया के अलावा मोमोज, नूडल्स, मंचूरियन और हॉट डॉग का भी आपयहां टेस्ट कर सकते हैं। सराफा चौपाटी में इन व्यंजनों कोशुद्ध शाकाहारी रेसिपी के साथ पारंपरिक मसाले डालकर पकाया जाता है।

गुप्ता के मुताबिकचौपाटी में पहलेहर रोज8 से 10 लाख रुपए की बिक्री होती थी। यहां एकदुकान में दो से तीन कर्मचारी काम करते थे। इस चौपाटी से 500 से 600 लोगों का परिवार अपना जीवन यापन करता है। लॉकडाउन के बाद से लोग परेशानी उठा रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां कई दुकानें तो 60 से 65 साल पुरानी हैं। जैसे शिवगिरी स्वीट काफी फेमस है। इसके अलावा सांवरिया के छाेले टिकिया, जाेशी के दही-बड़े, प्रकाश की कुल्फी को चखने लोग दूर- दूर से आते हैं।

लॉकडाउन हटने के बाद अब इंदौर में धीरे-धीरे दुकानें खुल रही हैं। लोग अब इन दुकानों पर स्ट्रीट फूड्स खाने के लिए आ रहे हैं।

56 दुकान में प्रतिदिन लॉकडाउन में हुआ 20 से 25 लाख का नुकसान
56 दुकान व्यापारी संघ अध्यक्ष गोपाल शर्मा ने बताया कि यहां की दुकानें करीब 4 माह से बंद हैं। अब प्रशासन ने पार्सल सुविधा शुरू करने की इजाजत दी है। हर दुकानदार की अपनी अलग-अलग सेल है। किसी की 25 हजार, किसी की50 हजार तो किसी की बिक्री रोजानाएक लाख तक है।

लॉकडाउन के 80 दिनों में 20 से 25 लाख रुपए रोज का नुकसान हुआ है। पार्सल सुविधा के बाद भी व्यापार में उतनी तेजीनहीं आ पा रहीहै, हालांकि थोड़ी राहत है। पार्सल सुविधा के बाद भी जूस, पोहे, जलेबी, कचोरी, समोसा, आइसक्रीम व्यापारी ठीक तरह से व्यापार नहीं कर पा रहे हैं। 56 दुकान के अलावा इसके आसपास करीब 150 दुकानें हैं, हर दुकान में दो से तीन कर्मचारी काम करते हैं। 56 दुकान में तो कर्मचारियों की संख्या आधा दर्जन से भी ज्यादा है।

इंदौर के मशहूर 56 मार्केट की तस्वीर है। यहां पर लॉकडाउन के बाद से ही दुकानें बंद हैं।56 दुकान के अलावा इसके आसपास करीब 150 दुकानें हैं।

56 दुकान का जॉनी हॉटडॉग काफी मशहूर
इंदौर के लोगों की फेवरेट 56 दुकान का जॉनी हॉटडॉग को पिछले साल उबर इट्स ने टॉप 10 उबर इट्स रेस्टोरेंट, मोस्ट पापुलर वेंडर और मोस्ट हाई फ्रीक्वेंसी कैटेगरी के अवॉर्ड से नवाजा था। विजय सिंह की जॉनी हॉटडॉग शॉप ने सिर्फ 6 महीने में पूरे 7 लाख हॉटडॉग उबर इट्स के जरिए डिलीवर कर डाले। यानी हर महीने उसने 1 लाख 16 हजार तो हर दिन 3866 हॉटडॉग बनाए। इसमें भी ये संख्या तो केवल उन हॉटडॉग की है, जो उबर इट्स से डिलीवर हुए, दुकान पर आकर खाने वालों का आंकड़ा क्या है, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।

40 साल पहले जॉनी हॉटडॉग की शुरुआत स्टारलिट टॉकीज के पास हुई थी। 80 के दशक में विजय सिंह दुकान को 56 पर ले आए, यहां भी उनका जायका बरकरार रहा। उनकी दुकान के देशी वेज और नॉनवेज हॉटडॉग इस कदर पसंद किए जाते हैं कि ये दुकान इन व्यंजनों कापर्याय बन गई है।

यहां सिर्फ देशी घी और मक्खन में सादा हॉटडॉग और बेंजो बनते हैं। इसमें किसी प्रकार के एक्स्ट्रा मसाले और अन्य एडिटिव नहीं डाली जाती है, इससे इसका स्वाद एक जैसा और सिम्पल बना हुआ है। वैसे, उनका हॉटडॉग कई नामी हस्तियां चख चुकी हैं। लॉकडाउन के बाद से शाॅप बंद होने से काफी नुकसान हुआ है। पॉर्सल सुविधा शुरू होने के बाद काम को रफ्तार देने की कोशिश की जा रही है।

फूड ब्लॉगर विनीत व्यास का कहना है किलॉकडाउन में सबसे ज्यादा फूड इंडस्ट्री को नुकसान हुआ है।

फूड ब्लॉगर विनीत व्यास का कहना है कि कोरोना के पहले की बात करें तो इंदौर का फूड मार्केट कैपिटल ऑफ इंडिया कहा जाता था।यह बिजनेस इतना सफल था कि लोगों ने घरों पर खाना बनाना कम कर दिया। लॉकडाउन में सबसे ज्यादा फूड इंडस्ट्री को नुकसान हुआ। इसमें काफी गैप आ गया।

अनलॉक के बाद इसकी भरपाई की कोशिश करते हुए होम डिलेवरी की सुविधा दी गई, लेकिन कई निजी कंपनियां जो फूड डिलिवर कर रही थीं। उनके मुताबिकलोग अभी भी बाहर का खाना ऑर्डर करने में डर रहे हैं। रेहड़ी या ठेले वालों की तो कमर ही टूट गई।



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