पैरालिसिस और व्हीलचेयर भी नहीं रोक पाए प्रतिष्ठा का रास्ता, अब ऑक्सफोर्ड में पढ़ने वाली वे पहली ऐसी भारतीय होंगी
दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज की होनहार स्टूडेंट प्रतिष्ठा देवेश्वर का चयन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिक पॉलिसी में मास्टर्स डिग्री के लिए हुआ है। प्रतिष्ठा व्हीलचेयर पर रहने वालीभारत की पहली लड़की हैं, जिन्हें दुनिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में जाकर पढ़ने का अवसर मिला है।
हालांकि शारीरिक विकलांग होने की वजह से प्रतिष्ठा का होशियारपुर से लेकर दिल्ली का सफर बिल्कुल आसान नहीं था। जीवन से जुड़े संघर्ष को प्रतिष्ठा खुद अपने शब्दों में कुछ इस तरह बयां करती हैं।
मुझे पैरालिसिस हो गया
जब मैं 13 साल की थी तो होशियारपुर से चंडीगढ़ जाते समय रास्ते में हमारी कार का एक्सीडेंट हो गया। एक्सीडेंट के बाद जब मुझे होश आया तो मैं हॉस्पिटल में थी। मेरी हालत इतनी खराब थी कि डॉक्टर ने ऑपरेशन करने से मना कर दिया। उनका कहना था कि ऑपरेशन करने से शरीर में खून कीइतनी कमी हो सकती है जिससे जान काे खतरा है।
लेकिन ऑपरेशन के अलावा मेरी जान बचाने का कोई उपाय नहीं था। इस ऑपरेशन से मेरी जान तो बच गई, लेकिन रीढ़ की हड्डीमें चोट आने की वजह से मुझे पैरालिसिस हो गया।
जिंदगी को कामयाब बना सकती हूं
उसके बाद लगभग चार महीने तक मैं आईसीयू में रही औरतीन साल तक मुझे पूरी तरह बिस्तर पर रखा गया। बेड पर रहते हुए तीन साल तक मैंने होम स्कूलिंग से अपनी पढ़ाई जारी रखी। 10 वी कक्षामें मुझे 90% अंक मिले। वहीं 12 कक्षा मेंमैंने 90% अंक प्राप्त किए।
मैंने अपनी शारीरिक कमजोरियोंका असर कभी पढ़ाई पर नहीं होने दिया क्योंकि मैं जानती थी कि सिर्फ पढ़ाई करके ही मैं अपनी जिंदगी को कामयाब बना सकती हूं।
मेरी जिंदगी को नई दिशा मिली
12 कक्षा में अच्छे अंक लाने के बाद मैंने घर के लोगों से मुझे दिल्ली यूनिवर्सिटी भेजने की बात की क्योंकि मैं घर की चार दीवारी में इस तरह नहीं जीना चाहती थी। तभी मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में लेडी श्रीराम कॉलेज के लिए अप्लाय किया और मेरा एडमिशन इस कॉलेज में हो गया।
इस कॉलेज ने मुझे इतना साहस दिया कि मैंने नसिर्फ अपने लिए बल्कि मेरे जैसी अन्य लड़कियों के लिए भीआवाज उठाना सीखा। यहां आकर मेरी जिंदगी को नई दिशा मिली। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना मैंने इसी कॉलेज में आकर सीखा।
अपनी बात कहने का अवसर मिला
मैंने न सिर्फ इस कॉलेज में बल्कि कॉलेज के बाहर होने वाले इवेंट्स में भी मेरी तरहके अन्य विकलांग बच्चों के लिए आवाज उठाने की शुरुआत की। मेरी आवाज देश-विदेश कीजानी-मानी कंपनीज और ऑर्गेनाइजेशन तक पहुंची। मुझे ब्रिटिश हाई कमीशन, हिंदुस्तान यूनिलीवर, यूनाइटेड नेशंस में वैश्विक स्तर पर अपनी बात कहने का अवसर मिला।
पढ़ाई करने के लिए जब मेरे दिल्ली में रहने की बात हुई तो परिवार के लोगों को सभी ने यही सलाह दी कि मैं पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हूं। ऐसी हालत में मुझे घर से दूर बिल्कुल नहीं भेजना चाहिए। अकेले रहना मेरे लिए संभव नहीं था। लेकिन असंभव शब्द कभी मेरी जिंदगी का हिस्सा नहीं रहा।
ऐसी कोई जगह मुझे नहीं मिली
दिल्ली में आकर मैंने ऐसी कई जगह ढूंढी जहां व्हील चेयर पर रहते हुए मुझे तमाम सुविधाएं मिल जाएं। लेकिन ऐसी कोई जगह मुझे नहीं मिली। उन्हीं दिनों मैंने बिना किसी की मदद के खुद शॉपिंग करने, बिल चुकाने और अकेले सफर करने की आदत डाली ताकि मैं अपने दम परदिल्ली में रह सकूं। हालांकि ये सारे काम मेरे लिए बहुत मुश्किलथे।
मेरे लिए मिनी बस या कैब का सफर भी आसान नहीं था। ऐसे में मैंने कई किलोमीटर का सफर व्हील चेयर से करना शुरू किया। व्हील चेयर से ही मैं दिल्ली के टूरिस्ट प्लेस को देखने भी जाती हूं। यहां तक कि कोरोना काल में भी व्हील चेयर के माध्यम से मैंने दिल्ली में अपना संघर्ष जारी रखा।
कोर्स का दुनिया में कोई जवाब नहीं है
मेरा मानना है कि भारत में जो पॉलिसी हैं, उनमें विकलांग लोगों के अनुसार अभी कई सुधार करने की जरूरत है। हमारे समाज को सुधारने के लिए भी कईप्रयास किए जाने चाहिए। मैंने ऑक्सफोर्ड जाने का फैसला भी इसीलिए किया क्योंकि पब्लिक पॉलिसी पर आधारित इस यूनिवर्सिटी के कोर्स का दुनिया में कोई जवाब नहीं है।
मैं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक पॉलिसी में मास्टर्स डिग्री लेना चाहती हूं। पढ़ाई करके भारत में रहने वाले उन 2 करोड़ 68 लाख विकलांग लोगों के लिए काम करना चाहती हूं जिन्हें हर हाल में सशक्त होने की जरूरत है। मैं ये साबित करना चाहती हूं कि मेरा एक एक्सीडेंट मुझे आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता औरमेरी व्हीलचेयर मुझे जिंदगी में कामयाब होने से नहीं रोक सकती।
सपने पूरे करने का हौसला रखती हैं
मैं दुनिया को ये दिखानाचाहती हूं कि एक लड़की व्हील चेयर पर होने के बावजूद अपने सारे सपने पूरे करने का हौसला रखती है। दुनिया की कोई कमी उसे आगे बढ़ने सेनहीं रोक सकती। मेरी कामयाबी में सबसे बड़ी मेहनत मेरे परिवार के लोगों ने की।
मेरे मम्मी-पापा और भाई ने कभी मुझे अपनी शारीरिक कमी की वजह से जिंदगी में रूकने के लिए नहीं कहा। उन्होंने हमेशा मुझे आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। मेरी सफलता का श्रेय मेरे परिवार को जाता है।
सपने देखना मत छोड़ो
मैं शारीरिक रूप से विकलांग लड़कियों से कहना चाहती हूं कि आपके साथ हालात चाहे जो भी हों लेकिन सपने देखना मत छोड़ो। सपने देखो और उन सपनों को पूरा करने के लिए खूब मेहनत करो। देखना एक दिन आपके वो सारे सपने पूरे होंगे। मेरा विश्वास है कि जो हम सोच सकते हैं वो यकीनन हम कर भी सकते हैं।
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