15 हजार वैज्ञानिक, 200 कंपनियां, सालभर में बनते हैं वैक्सीन के 6 अरब डोज
मैं हैदराबाद गया था। सबसे पहले पहुंचा शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित जीनोम वैली, क्योंकि यहां देश की तीन बड़ी कंपनियां कोरोना की वैक्सीन डेवलप कर रही हैं। इनमें भारत बायोटेक, बायोलॉजिकल ई और इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड शामिल हैं।
जीनोम वैली में एंट्री लेने में तो कोई मुश्किल नहीं है, क्योंकि इसके बीचों-बीच से गांव के लिए सड़क गुजरती है और दिनभर लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन यहां बनी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में किसी की एंट्री नहीं है।
इन्हीं में से एक भारत बायोटेक की फैक्ट्री में कुछ दिन पहले PM नरेंद्र मोदी पहुंचे थे और उन्होंने कोवैक्सिन के डेवलपमेंट की जानकारी ली थी। तब से यहां सिक्योरिटी और ज्यादा सख्त हो गई है। 600 वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा इलाके में फैली इस वैली को देश का सबसे बड़ा लाइफ साइंसेज क्लस्टर कहा जाता है। जीनोम वैली का नाम एशिया के टॉप लाइफ साइंसेज क्लस्टर में भी शामिल है, क्योंकि यहां से 100 से ज्यादा देशों में वैक्सीन भेजी जाती है।
सबसे पहले मैं भारत बायोटेक की फैक्ट्री के सामने ही पहुंचा। गार्ड ने बताया कि, पूरा स्टाफ बस से आना-जाना करता है। स्टाफ के अलावा सिर्फ वही लोग अंदर जा सकते हैं, जिन्होंने पहले से परमिशन ली है। इसके अलावा किसी की भी एंट्री नहीं है। भारत बायोटेक ने जुलाई से नवंबर के बीच कोवैक्सिन डेवलप कर रहे अपने वैज्ञानिकों को गेस्ट हाउस में ही रोका था। दिसंबर से वैज्ञानिकों ने घर आना-जाना शुरू कर दिया है।
जीनोम वैली शहर से काफी दूर है, इसलिए पूरा स्टाफ कंपनी की बस से ही आता-जाता है। भारत बायोटेक से चंद कदमों की दूरी पर ही बायोलॉजिकल ई की फैक्ट्री है। यहां भी बाहर के लोगों की एंट्री बंद है। एंट्री गेट के पास मुझे एम्प्लॉई फूड पैकेट ले जाते दिखे तो मैंने वहां खड़े गार्ड से पूछा कि, क्या ये लोग कोरोना वैक्सीन वाली टीम में शामिल हैं तो गार्ड ने कहा, सभी स्टाफ के लोग हैं। फूड पैकेट बाहर से आते हैं।
15 हजार वैज्ञानिक, 6 अरब डोज सालभर में बनते हैं
जीनोम वैली में एग्रीकल्चर-बायोटेक, क्लीनिकल रिसर्च मैनेजमेंट, बायोफार्मा, वैक्सीन मैन्यूफैक्चरिंग, रेग्युलेटरी एंड टेस्टिंग करने वाली 200 से भी ज्यादा कंपनियां हैं, इसलिए इसे लाइफ साइंसेज क्लस्टर कहा जाता है।
तेलंगाना सरकार के लाइफ साइंसेज और फार्मा के डायरेक्टर शक्ति नागप्पन से मैंने जीनोम वैली के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, 'कुछ समय पहले हमने एक सर्वे करवाया था, उसमें पता चला था कि जीनोम वैली में 15 हजार से ज्यादा साइंटिफिक वर्कफोर्स है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर यहां से लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है।' रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगले दस सालों में यहां चार लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा हो सकती हैं।
एशिया के टॉप फार्मा क्लस्टर में आता है नाम
मैंने उनसे पूछा कि, जीनोम वैली से सालभर में कितनी मात्रा में दवाएं बनती हैं? तो इस पर बोले, 'वैक्सीन के छह अरब डोज यहां से हर साल बनते हैं। यह अलग-अलग बीमारियों की अलग-अलग दवाएं होती हैं।' मैंने पूछा, ऐसा कहा जा रहा है कि, जीनोम वैली से दुनिया की आधी आबादी के लिए कोरोना की वैक्सीन बनाई जा सकती हैं? इस पर बोले, 'ये फिगर कहां से आया, ये मुझे पता नहीं है, लेकिन जीनोम वैली एशिया के टॉप लाइफ साइंसेज क्लस्टर में से एक है।'
डॉ. ऐल्ला ने दिया था बायोटेक नॉलेज पार्क बनाने का प्रपोजल
जीनोम वैली को बनाने के पीछे भारत बायोटेक के एमडी डॉ. कृष्णा एम ऐल्ला का दिमाग माना जाता है। उन्होंने साल 1996 में तत्कालीन CM चंद्रबाबू नायडू को बायोटेक नॉलेज पार्क बनाने के लिए प्रेजेंटेशन दिया था। इसके बाद आंध्रप्रदेश इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन के जरिए नॉलेज पार्क के लिए जमीन ली गई।
यह भारत के लिए एकदम नया कॉन्सेप्ट था, इसलिए सरकार ने भी इसमें पूरी दिलचस्पी दिखाई। भारत बायोटेक का हेपेटाइटिस वैक्सीन प्लांट ही सबसे पहले यहां स्थापित हुआ था। बाद में ICICI नॉलेज पार्क और दूसरी तमाम कंपनियां यहां आईं और फिर इसका नाम जीनोम वैली हो गया। आज यहां 100 से ज्यादा नॉलेज बेस्ड इंडस्ट्रीज हैं।
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