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हम 15 अगस्त को आजाद हुए, पर लालकिले पर पहली बार तिरंगा 16 अगस्त को फहराया; माउंटबेटन ने भी सलामी दी थी

आज आजादी का दिन है। 15 अगस्त है। एक ऐसा दिन है, जिस पर हर भारतीय को गर्व होता है। इस बार पूरा देश 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इसी दिन 1947 में भारत को अंग्रेजी शासन से आजादी मिली थी। लेकिन ये आजादी कैसे मिली थी, कितने देशभक्तों ने सलाखों के पीछे जिंदगी गुजार दी, कितनों ने फांसी के फंदों को चूम लिया, कितनों ने सीने पर गोलियां खाईं, कितनों ने हंसी के साथ शहादत को गले लगा लिया। और भी न जाने क्या-क्या किया उन वीर, सपूत, देशभक्तों ने हमें आजादी दिलाने के लिए। आज वो दिन आया है, उन महान लोगों को याद करने का, नमन करने का, नतमस्तक होने का।

इसलिए इस आजादी के दिन हमने आपके लिए निकाली हैं, आजादी की लड़ाई की 74 यादगार तस्वीरें, जिनके जरिए आप आजादी की पूरी कहानी को जान पाएंगे, समझ पाएंगे और वीरों को नमन कर पाएंगे।

24 अगस्त 1608 को कारोबार करने के मकसद से अंग्रेजों ने भारत के सूरत बंदरगाह पर कदम रखे थे। धीरे-धीरे यहीं बसते चले गए। हमें गुलाम बनाकर अंग्रेजों ने अपने सारे काम करवाए। इस तस्वीर में एक अंग्रेज भारतीय से अपने नाखून कटवा रहा है।
ये फोटो 1857 के विद्रोह से पहले की है। उस समय अंग्रेज जिस कारतूस का इस्तेमाल करते थे, उसमें गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल होता था। इसे दांत से खींचना पड़ता था। ब्रिटिश सेना में शामिल भारतीय सैनिकों ने ऐसा करने से मना कर दिया था। उसी के बाद विद्रोह हुआ।
ये तस्वीर लखनऊ के सिकंदर बाग की है। 1857 में ब्रिटिश सेना में शामिल भारतीय सैनिकों के विद्रोह के बाद सैकड़ों भारतीय सिपाही इस बाग में छिप गए थे। नवंबर 1857 में ब्रिटिश सेना ने बाग पर चढ़ाई कर तकरीबन दो हजार भारतीय सैनिकों को मार दिया था। इस फोटो में जो कंकाल दिख रहे हैं, वो भारतीय सैनिकों के ही हैं।
ये फोटो लखनऊ रेजिडेंसी की है। ये वो जगह है जहां 1857 में अंग्रेजों ने शरण ली थी। 1857 में जब गदर मचा, तो यहां छुपे अंग्रेजों पर हमला हो गया। करीब 5 महीने तक लड़ाई चलती रही। बम, गोला-बारूद और तोप के गोले यहां मारे गए। आज भी ये जगह वैसी ही है।
ये झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की ओरिजिनल तस्वीर है। 1857 के गदर के बाद जब अंग्रेजों ने झांसी पर हमला किया, तो रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें माकूल जवाब दिया। झांसी पर आखिरी कार्रवाई करने वाले ह्यूरोज ने कहा था कि सभी बागियों के बीच वही एक मर्द थीं।
फोटो 1857 के विद्रोह की ही है। जब विद्रोह की आग मेरठ से कानपुर पहुंची, तो उस समय ह्यूज व्हीलर कानपुर का कमांडिंग अफसर था। ये फोटो कानपुर की है। ह्यूज ने कानपुर में दो बैरक बना रखे थे। कानपुर के राजा नाना साहिब ने इन बैरकों पर हमला कर दिया था।
1857 में हुए विद्रोह से अंग्रेज घबरा गए थे। बताया जाता है कि लड़ाई खत्म होने के बाद करीब 10 लाख हिंदुस्तानियों को मारा गया था। एक पूरी पीढ़ी को ही खड़ा होने से रोक दिया गया था। अंग्रेजों ने जगह-जगह लोगों को पकड़-पकड़कर फांसी पर लटका दिया था।
इस फोटो में लाल-बाल-पाल हैं, यानी लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में बंट गई थी। लाल-बाल-पाल गरम दल के नेता थे। गरम दल हिंसा व क्रांति का समर्थन करता था, जबकि नरम दल का अहिंसा में विश्वास था।
16 अक्टूबर 1905 को लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के दो टुकड़े कर दिए। इसे बंग-भंग भी कहा जाता है। विभाजन के बाद बंगाल, पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल में बंट गया। पूर्वी बंगाल का कुल क्षेत्रफल 1. 06 लाख वर्ग मील था और राजधानी ढाका थी। जबकि, पश्चिम बंगाल में बिहार, ओडिशा शामिल थे। इसका कुल क्षेत्रफल 1.41 लाख वर्ग मील था। राजधानी कोलकाता थी।
यह खुदीराम बोस की है। महज 18 साल की उम्र में 11 अगस्त 1908 को खुदीराम को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। खुदीराम बचपन से ही क्रांतिकारी थे। खुदीराम को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई थी। खुदीराम शेर की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते पर बढ़े थे।
ये फोटो वर्ल्ड वॉर-1 की है। इस युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से 10 लाख भारतीय सैनिक लड़े थे। उनमें करीब 75 हजार भारतीय सैनिकों को शहादत मिली थी।
पहले विश्वयुद्ध में ब्रिटिश शासकों ने भारतीय सेना की भी मदद ली थी। इस दौरान भारतीय सेना ने यूरोपीय, भूमध्य-सागरीय और मध्य पूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अपने डिविजनों और स्वतंत्र ब्रिगेड को योगदान दिया था। लड़ाई में शामिल 9200 सैनिकों को वीरता पदक भी मिला था।
1927 में साइमन कमीशन आयोग बना, जो 7 ब्रिटिश सांसदों का समूह था। अध्यक्ष जॉन साइमन थे। फरवरी 1928 में साइमन कमीशन भारत आया। पूरे देश में इसका जोरदार विरोध हुआ। जगह-जगह "साइमन गो बैक" के नारे लगाए जाने लगे। लाहौर के प्रदर्शन में पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय घायल हो गए और 18 दिन बाद उनका निधन हो गया।
भगत सिंह की ये फोटो 1927 में ली गई थी, जब उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया था। यहां उन्हें जेल की कोठरी नंबर 14 में रखा गया था, जहां फर्श भी पक्की नहीं थी और जगह-जगह घास उगी हुई थी। कोठरी इतनी छोटी थी कि भगत सिंह मुश्किल से उसमें लेट पाते थे।
स्पेशल ट्रिब्युनल कोर्ट ने 7 अक्टूबर 1930 को आईपीसी की धारा 121 और 302 और एक्सप्लोसिव सबस्टेंस एक्ट 1908 की धारा 4(बी) और 6(एफ) के तहत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की मौत की सजा का ऐलान किया।
ये भगत सिंह का डेथ सर्टिफिकेट है, जिसे 23 मार्च 1931 को जेल निरीक्षक ने जारी किया था। सर्टिफिकेट के मुताबिक, भगत सिंह को एक घंटे तक फांसी के फंदे से लटकाए रखा गया था। ये सर्टिफिकेट पाकिस्तान के पास है और दो साल पहले पाकिस्तान ने इसे सार्वजनिक किया था।
1928 में गुजरात में किसानों के लिए आंदोलन हुआ, जिसे बारडोली सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी और सरदार पटेल की ये तस्वीर इसी आंदोलन की है। उस समय अंग्रेजों ने किसानों का लगान 22% बढ़ा दिया था। आंदोलन के बाद अंग्रेजों को झुकना पड़ा था।
1930 के दशक में गांधीजी ने विदेशी सामान के बहिष्कार की अपील की थी। इसके बाद देशभर में विदेशी सामान जला दिए गए। जगह-जगह भी प्रदर्शन हुए थे।
दांडी मार्च शुरू करने से एक दिन पहले 11 मार्च 1930 को गांधीजी ने भाषण दिया था। इसमें उन्होंने कहा था, "हमने विशेष रूप से एक अहिंसात्मक संघर्ष की खोज में, अपने सभी संसाधनों का उपयोग करने का संकल्प किया है। क्रोध में कोई भी गलत निर्णय न लें।"
ये फोटो 1930 में हुए दांडी मार्च की है, जिसे नमक सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है। उस समय गांधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का मार्च निकाला था। इस मार्च के बाद अगले कुछ ही महीनों में 80 हजार से ज्यादा भारतीयों को गिरफ्तार किया गया था।
1930 के दशक में देश में विदेशी समानों के बहिष्कार की लहर चली। जगह-जगह इंग्लैंड से आने वाले सामान का बहिष्कार किया जाने लगा था। ये फोटो उसी वक्त की है। एक व्यक्ति सड़क पर इसलिए लेट गया था, क्योंकि बैलगाड़ी पर विदेशी सामान आ रहा था।
12 मार्च 1930 से गांधीजी ने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की थी, जिसे दांडी मार्च भी कहा जाता है। ये सत्याग्रह अंग्रेजों के बनाए गए नमक कानून को तोड़ने के लिए था। दरअसल, अंग्रेजों ने नया कानून बनाया था, जिसमें भारतीयों को नमक बनाने की इजाजत नहीं थी। इस सत्याग्रह में लोगों के हाथ में कोई तख्ती या झंडा नहीं था।
ये फोटो उस समय की है जब गांधीजी की अपील पर देशभर में सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया था।
ये फोटो 7 अप्रैल 1930 की है, इसमें सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू दिख रहे हैं। बोस और नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद थे, पर बोस हमेशा छोटे भाई की तरह नेहरू की मदद करते थे। जब कमला नेहरू की तबियत बिगड़ी और नेहरू उन्हें लेकर यूरोप गए, तो नेताजी ने उनकी काफी मदद की थी। कमला नेहरू के अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी बोस ने ही की थी।
इस फोटो में गांधीजी के साथ सरोजिनी नायडू हैं। ये फोटो उस वक्त ही है, जब 1931 में लंदन में हो रही राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए गांधीजी और सरोजिनी नायडू जा रहे थे। नायडू गांधीजी को कभी मिकी माउस तो कभी लिटिल मैन कहकर बुलाती थीं। गांधीजी भी उन्हें डियर मीराबाई, डियर बुलबुल और कभी-कभी तो अम्मा जान और मदर भी बुलाते थे।
1930 में जब अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन बढ़ गए, तो लंदन में 1931 में दूसरी राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस रखी गई। पहली राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में गांधीजी शामिल नहीं हुए थे, इसलिए वो फ्लॉप हो गई थी। दूसरी कॉन्फ्रेंस में शामिल होने की बात गांधीजी ने आखिर तक नहीं बताई।
काकोरी कांड और 1929 में हुए बम कांड के बाद से ही पुलिस चंद्रशेखर आजाद को ढूंढ रही थी। 27 फरवरी 1931 को पुलिस ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया। आखिर में आजाद ने अपनी ही आखिरी गोली से खुद को गोली मार ली और शहीद हो गए।
27 फरवरी 1931 को मुखबिरों ने पुलिस को सूचना दे दी कि चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हैं। इसके बाद पुलिस ने आजाद को घेर लिया। आखिरी में चंद्रशेखर आजाद ने अपनी ही पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली थी।
ये फोटो 1933 की है, जब गांधीजी ने दूसरा उपवास रखा था। ये उपवास 8 मई से 29 मई तक 21 दिनों के लिए रखा था, जो छुआछूत के विरोध में किया था।
1934 में बंगाल के गवर्नर जॉन एंडरसन को मारने की साजिश रची गई। इसमें भवानी प्रसाद भट्टाचार्यजी, रबिंद्र नाथ बनर्जी, मनोरंजन बनर्जी, उजाला मजूमदार, मधुसूदन बनर्जी, सुकुमार घोष और सुशील चक्रवर्ती शामिल थे। 17 मई को पुलिस ने इन्हें पहले ही गिरफ्तार कर लिया।
इस फोटो में भारतीय संविधान के पितामह डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का परिवार दिख रहा है। फोटो उनके घर "राजगृह" में ली गई थी। तस्वीर में डॉ. अंबेडकर के साथ उनके बेटे यशवंत, पत्नी रमाबाई, भाभी लक्ष्मी बाई, भतीजे मुकुंदराव (बाईं ओर से) है। राजगृह में अंबेडकर फरवरी 1934 में रहने के लिए आए थे।
ये फोटो 1937 की है। बंबई में अंग्रेजों के एक कानून के खिलाफ हड़ताल हो गई थी। विरोध में लोग साइकिल लेकर निकले पड़े थे। हड़ताल के समर्थन में व्यापारियों ने काम बंद कर दिया था और बंबई की 15 मिलें बंद हो गई थीं।
ये फोटो उस समय की है, जब बंबई के एक खाली मैदान में कांग्रेस की मीटिंग चल रही थी। पुलिस इस मीटिंग को बंद करवाने पहुंच गई, लेकिन कार्यकर्ता नहीं माने। जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इसमें कई महिलाएं और बच्चे भी घायल हुए थे।
लुकमनी नाम की महिला को उम्रकैद की सजा मिलने के फैसले के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन हुए थे। विदेशी सामान का बहिष्कार करने पर उन्हें सजा सुनाई गई थी। इस फैसले के खिलाफ बंबई की सड़कों पर महिलाएं उतर आई थीं।
गांधीजी और सुभाषचंद्र बोस की ये तस्वीर 1938 में हरिपुरा में हुए कांग्रेस के अधिवेशन की है। इस अधिवेशन से पहले गांधीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाषचंद्र बोस को चुना था। वो कांग्रेस के 55वें अध्यक्ष थे।
24 नवंबर 1939 को दिल्‍ली में वायसराय लॉज के पास जाते समय महात्‍मा गांधी रास्‍ते में पड़े मोहम्‍मद अली जिन्‍ना के घर भी गए थे।
फोटो है फरवरी 1940 की और जगह है पश्चिम बंगाल में मौजूद शांतिनिकेतन। मार्च 1915 में गांधीजी और रबींद्रनाथ टैगोर की मुलाकात शांतिनिकेतन में ही हुई थी। गांधीजी को टैगोर ने ही "महात्मा" की उपाधि दी थी।
फोटो 7 अगस्त 1942 की बंबई में हुई कांग्रेस कमेटी की बैठक की है। उस समय मैदान में 10 हजार लोग बैठे हुए थे। जबकि, 5 हजार लोग मैदान के बाहर खड़े होकर लाउड स्पीकर के जरिए गांधी-नेहरू के भाषण को सुन रहे थे।
अगस्त 1942 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन शुरू हुआ था, जिसे भारत छोड़ो आंदोलन कहा गया। इसे अगस्त क्रांति भी कहा जाता है। गांधीजी समेत 60 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
8 अगस्त 1942 को बंबई में हुई कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में "भारत छोड़ो" प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त से भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ। पर आंदोलन के शुरू होते ही गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। फिर देश में गांधीजी की रिहाई की मांग को लेकर दंगे भड़क गए।
अगस्त 1942 में गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन शुरू होने से पहले ही गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन आंदोलन चलता रहा। ब्रिटिश सरकार ने हजारों पुरुषों को गिरफ्तार कर लिया तो महिलाएं सड़कों पर उतर आईं।
गांधीजी हमेशा अहिंसा को ही मानते थे और वो अक्सर अपने समर्थकों से भी हिंसा नहीं करने की अपील करते थे। ये फोटो भी उसी का उदाहरण है। गांधीजी के समर्थक अंग्रेजों के सामने दीवार बनाकर खड़े हो गए थे।
1943 में बंगाल में भयानक अकाल पड़ा था। ये तस्वीर उसी की कहानी बयां कर रही है। सड़कों पर लाशें पड़ी हैं और उनके ऊपर गिद्ध मंडरा रहे हैं। इस अकाल में करीब 30 लाख लोग भूख से तड़प-तड़प कर मर गए थे।
आजादी के लिए सुभाष चंद्र बोस ने दुनियाभर के नेताओं से मुलाकात की थी। इसी सिलसिले में जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर से भी मिले थे। हिटलर ने नेताजी से माफी भी मांगी थी। हुआ ये था कि हिटलर ने अपनी बायोग्राफी "मीन कैम्फ" में भारतीयों के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी थीं। जब नेताजी ने इस बात को उठाया तो हिटलर ने शर्मिंदा होकर माफी मांग ली।
ये फोटो 1944 की है, जिसमें सुभाष चंद्र बोस और जापान के उस समय के प्रधानमंत्री तोजो दिख रहे हैं। हुआ ये था कि 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद भारत की पहली सरकार बना ली थी। इस सरकार में बोस प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री थे। इस सरकार के 9 देशों के साथ कूटनीतिक संबंध भी थे। जापान तो खुलकर साथ देता था।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ही सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया। इस फौज का गठन भारत में ही नहीं, बल्कि जापान में भी हुआ था। इसमें 85 हजार सैनिक शामिल थे।
इस फोटो में गांधीजी के साथ खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें फ्रंटियर गांधी और बच्चा खान के नाम से भी जाना जाता है। गांधीजी की तरह ही गफ्फार खान भी अहिंसा के रास्ते पर चलते थे। गफ्फार को फ्रंटियर गांधी का नाम गांधीजी के एक दोस्त ने दिया था।
ये सुभाष चंद्र बोस की उस वक्त की फोटो है, जब उन्हें आखिरी बार अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया था। 18 अगस्त 1945 को एक विमान हादसे में नेताजी की मौत हो गई थी। लेकिन, तीन साल पहले फ्रांस की सीक्रेट सर्विस सुरेट की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि नेताजी 1945 से 1947 तक ब्रिटेन की कस्टडी में थे और उसके बाद वो वहां से बच निकले थे।
29 जुलाई 1946 को मोहम्मद अली जिन्ना ने ऐलान किया कि 16 अगस्त 1946 को "डायरेक्ट एक्शन डे" होगा। इसी ऐलान पर बंगाल में दंगे भड़के थे। इस तस्वीर में भी मुस्लिम लीग के समर्थक हैं, जो डायरेक्ट एक्शन डे में शामिल थे।
16 अगस्त 1946 को बंगाल में अचानक सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे। इन दंगों में महज 5 दिन में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, जबकि 4 हजार से ज्यादा घायल हुए थे। इन दंगों को "ग्रेट कलकत्ता किलिंग" भी कहा जाता है।
आजादी से ठीक एक साल पहले 16 अगस्त 1946 को बंगाल के नोआखली जिले में दंगे भड़क गए थे। इन दंगों में 7 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उसके बावजूद दंगों पर काबू नहीं पाया जा सका था। बाद में ब्रिटिश सरकार ने दंगे रोकने के लिए सड़कों पर टैंक उतार दिए थे।
ये फोटो नवंबर 1946 में मेरठ में हुए कांग्रेस कमेटी के 55वें सेशन की है। इससे ठीक पहले जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके बाद आचार्य जेबी कृपलानी अध्यक्ष बने थे और आजादी तक इस पद पर बने रहे।
अंग्रेज ताजमहल घूमने भी अक्सर जाया करते थे। इतिहासकार राजकिशोर राजे अपनी पुस्‍तक ‘तवारीख ए आगरा’ में लिखते हैं कि अंग्रेजों के लिए ताजमहल हमेशा बेहद आकर्षण का केंद्र रहा। वर्ष 1857 के बहादुरशाह जफर के विद्रोह के बाद यहां की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी।
9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली के काउंसिल चैम्बर में हुई थी। सभा के सबसे उम्रदराज डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया था। मुस्लिम लीग इस बैठक में शामिल नहीं हुई थी और पाकिस्तान के लिए अलग संविधान सभा की मांग रख दी थी।
ये तस्वीर 8 फरवरी 1947 की है। इसी दिन जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में एक स्वतंत्र गणतंत्र का प्रस्ताव रखा था।
महात्मा गांधी और माउंटबेटन की ये तस्वीर आजादी से चंद दिनों पहले की है। बंटवारे को लेकर माउंटबेटन से सबसे पहले गांधीजी से ही चर्चा की थी। माउंटबेटन अच्छी तरह से जानते थे कि अगर महात्मा गांधी कह देंगे कि बंटवारा नहीं होना चाहिए, तो फिर बंटवारा नहीं हो सकता।
ये फोटो उस दिन की है, जिसने भारत का इतिहास-भूगोल बदलकर रख दिया। ये तारीख है 3 जून 1947। इस दिन माउंटबेटन ने कांग्रेस कमेटी और मुस्लिम लीग के सामने भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का प्लान रखा था।
जवाहरलाल नेहरू की ये फोटो आजादी से कुछ दिन पहले की है। उन्होंने आजादी से कुछ समय पहले दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी।
ये फोटो भारत में मोहम्मद अली जिन्ना की आखिरी तस्वीर है। इसके बाद वो हमेशा के लिए पाकिस्तान चले गए थे। 3 जून 1947 को जिन्ना ने ऑल इंडिया रेडियो पर पाकिस्तान के अलग देश बनने की घोषणा की थी।
15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे। उन्हें लॉर्ड माउंटबेटन ने शपथ दिलवाई थी। माउंटबेटन आखिरी वायसराय थे।
ये आजाद भारत की पहली कैबिनेट है। इसमें जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री और सरदार वल्लभ भाई पटेल गृहमंत्री बने थे। इनके अलावा डॉ. अबुल कलाम आजाद, डॉ. जॉन मथाई, सरदार बलदेव सिंह, आरके शणमुखम शेट्टी, बीआर अंबेडकर, जगजीवन राम, राजकुमारी अमृत कौर, सीएच भाभा, रफी अहमद, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और वीएन गाडगिल शामिल थे।
ये फोटो पहले स्वतंत्रता दिवस की है। आजादी से लोग माउंटबेटन से बहुत खुश थे। पहली बार उनकी बग्घी को हजारों-लाखों की भीड़ ने घेर लिया था। उनके साथ पत्नी एडविना और जवाहरलाल नेहरू भी थे। माउंटबेटन ने बग्घी पर ही खड़े होकर तिरंगे को सैल्यूट किया था। उस वक्त भीड़ से आवाज आ रही थी, "माउंटबेटन की जय...पंडित माउंटबेटन की जय।"
ये 15 अगस्त 1947 की सुबह है। आजाद भारत की पहली सुबह। अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद लोग खुशी से सड़कों पर जमा हो गए थे।
तस्वीर पहले स्वतंत्रता दिवस की है। दिल्ली के चांदनी चौक की।
ये तस्वीर बंबई की सड़कों की है। आजादी के अगले दिन बड़ी संख्या में लोग जश्न मनाने सड़कों पर उतर आए थे। ये जश्न पूरे दिन चलता रहा।
15 अगस्त 1947 को सिर्फ भारत ही नहीं, लंदन में भी तिरंगा फहराया था। ये फोटो लंदन स्थित इंडिया हाउस की है, जहां 15 अगस्त 1947 को तिरंगा फहराया गया था। ये तिरंगा नृपेंद्र नाथ शाहदेव ने ब्रिटेन के झंडे को उतारकर फहराया था।
भारत को आजादी तो 15 अगस्त को मिल गई थी, लेकिन लाल किले पर तिरंगा 16 अगस्त को फहराया गया था। ये पहली और आखिरी बार है जब लाल किले पर तिरंगा 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 16 अगस्त को फहराया गया।
1947 में जब भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग मुल्क बने, तब दोनों ही मुल्कों के बीच संपत्तियों का बराबर बंटवारा हुआ था। टेबल-कुर्सी तक दोनों देशों के बीच बराबर बांटी गई थीं। यहां तक कि लाइब्रेरी की किताबें भी भारत-पाकिस्तान में बराबर-बराबर बंटी थीं।
ये फोटो कराची के डॉक की है। बंटवारे के बाद वहां से लाखों की तादाद में हिंदू शरणार्थी भारत लौटे थे। 1951 की जनगणना के मुताबिक, बंटवारे के बाद पाकिस्तान से 72.49 लाख हिंदू-सिख भारत लौटे थे।
1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद 1.5 करोड़ लोगों ने पलायन किया था। इसे मानव इतिहास का सबसे बड़ा पलायन माना जाता है। पलायन के दौरान ही करीब 10 से 20 लाख लोग मारे गए थे। हजारों महिलाओं का अपहरण हुआ था।
ये फोटो उन मुसलमानों की है, जो बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान जा रहे थे। 1951 की जनगणना का डेटा बताता है कि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद 72.26 लाख मुस्लिम पाकिस्तान चले गए थे। ये मुस्लिम पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान गए थे।
अगस्त 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो करोड़ों की संख्या में लोग इधर से उधर हुए थे। ये फोटो पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से लौट रहे हिंदुओं की है। बंटवारे के बाद औरतें-बच्चे पैदल ही सामान समेटकर ट्रेन की पटरियों के सहारे भारत पहुंच रहे थे।
आजादी के फौरन बाद ही कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। पाकिस्तान ने जब कश्मीर पर हमला किया तो कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत में विलय को मंजूर कर लिया। भारत-पाक के बीच अक्टूबर 1947 से शुरू हुआ युद्ध 1 जनवरी 1949 को खत्म हुआ था। इस युद्ध में कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया।
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर गांधीजी की हत्या कर दी। उनका अंतिम संस्कार 31 जनवरी को दिल्ली में यमुना किनारे हुआ था। गांधीजी के छोटे बेटे ने एक इंटरव्यू में बताया था कि करीब दस लाख लोग साथ चल रहे थे और करीब 15 लाख लोग रास्ते में खड़े थे।


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